शनिवार, 20 अगस्त 2022

श्री कृष्ण जी की आरती ॐ जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे|भक्तन के दुख सारे पल में दूर करे||जय जय श्री कृष्ण हरे....परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी|जय रस रास बिहारी जय जय गिरधारी||जय जय श्री कृष्ण हरे....कर कंकन कटि सोहत कानन में बाला|मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला||जय जय श्री कृष्ण हरे....दीन सुदामा तारे दरिद्रों के दुख टारे|गज के फ़ंद छुड़ाए भव सागर तारे||जय जय श्री कृष्ण हरे....हिरण्यकश्यप संहारे नरहरि रुप धरे|पाहन से प्रभु प्रगटे जम के बीच परे||जय जय श्री कृष्ण हरे....केशी कंस विदारे नल कूबर तारे|दामोदर छवि सुन्दर भगतन के प्यारे||जय जय श्री कृष्ण हरे....काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे|फन-फन नाचा करते नागन मन मोहे||जय जय श्री कृष्ण हरे....उग्रसेन राज्य पाये माता शोक हरे|द्रुपद सुता पत राखी करुणा लाज भरे||जय जय श्री कृष्ण हरे....ॐ जय श्री कृष्ण हरे|

श्री कृष्ण जी की आरती  ॐ जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे|

भक्तन के दुख सारे पल में दूर करे||
जय जय श्री कृष्ण हरे....

परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी|
जय रस रास बिहारी जय जय गिरधारी||
जय जय श्री कृष्ण हरे....

कर कंकन कटि सोहत कानन में बाला|
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला||
जय जय श्री कृष्ण हरे....

दीन सुदामा तारे दरिद्रों के दुख टारे|
गज के फ़ंद छुड़ाए भव सागर तारे||
जय जय श्री कृष्ण हरे....

हिरण्यकश्यप संहारे नरहरि रुप धरे|
पाहन से प्रभु प्रगटे जम के बीच परे||
जय जय श्री कृष्ण हरे....

केशी कंस विदारे नल कूबर तारे|
दामोदर छवि सुन्दर भगतन के प्यारे||
जय जय श्री कृष्ण हरे....

काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे|
फन-फन नाचा करते नागन मन मोहे||
जय जय श्री कृष्ण हरे....

उग्रसेन राज्य पाये माता शोक हरे|
द्रुपद सुता पत राखी करुणा लाज भरे||
जय जय श्री कृष्ण हरे....

ॐ जय श्री कृष्ण हरे|

श्री कुंजबिहारी जी की आरतीआरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की|| गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला|श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला|गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली|लतन में ठाढ़े बनमाली,भ्रमर सी अलक,कस्तूरी तिलक,चंद्र सी झलक,ललित छवि श्यामा प्यारी की||श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की...कनकमय मोर-मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं|गगन सों सुमन रासि बरसै,बजे मुरचंग,मधुर मिरदंग,ग्वालिन संग,अतुल रति गोप कुमारी की||श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।स्मरन ते होत मोह भंगा,बसी सिव सीस,जटा के बीच,हरै अघ कीच,चरन छवि श्रीबनवारी की||श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...चमकती उज्ज्वल तट रेनू (रेणू), बज रही वृंदावन बेनू (बेणू)।चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू,हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद,कटत भव-फंद,टेर सुन दीन भिखारी की||श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की||आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की||

श्री कुंजबिहारी जी की आरतीआरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की|| 



गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला|
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला|
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली|
लतन में ठाढ़े बनमाली,
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की||
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की...

कनकमय मोर-मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं|
गगन सों सुमन रासि बरसै,
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की||
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा,
बसी सिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की||
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...

चमकती उज्ज्वल तट रेनू (रेणू), बज रही वृंदावन बेनू (बेणू)।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू,
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव-फंद,
टेर सुन दीन भिखारी की||
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की||
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की||

(श्री रघुवर जी की आरती) आरती कीजै श्री रघुवर जी की|सत् चित आनन्द शिव सुन्दर की||टेक||दशरथ तनय कौशल्या नन्दन|सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन||आरती कीजै०||अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन|मर्यादा पुरुषोतम वर की||आरती कीजै०||निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि|सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि||आरती कीजै०||हरण शोक-भय दायक नव निधि|माया रहित दिव्य नर वर की||आरती कीजै०||जानकी पति सुर अधिपति जगपति|अखिल लोक पालक त्रिलोक गति||आरती कीजै०||विश्‍व वन्द्य अवन्ह अमित गति|एक मात्र गति सचराचर की||आरती कीजै०||शरणागत वत्सल व्रतधारी|भक्त कल्प तरुवर असुरारी||आरती कीजै०||नाम लेत जग पावनकारी|वानर सखा दीन दुख हर की||आरती कीजै श्री रघुवर जी की|सत् चित आनन्द शिव सुन्दर की||


                  (श्री रघुवर जी की आरती)
आरती कीजै श्री रघुवर जी की|
सत् चित आनन्द शिव सुन्दर की||टेक||

दशरथ तनय कौशल्या नन्दन|
सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन||
आरती कीजै०||

अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन|
मर्यादा पुरुषोतम वर की||
आरती कीजै०||

निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि|
सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि||
आरती कीजै०||

हरण शोक-भय दायक नव निधि|
माया रहित दिव्य नर वर की||
आरती कीजै०||

जानकी पति सुर अधिपति जगपति|
अखिल लोक पालक त्रिलोक गति||
आरती कीजै०||

विश्‍व वन्द्य अवन्ह अमित गति|
एक मात्र गति सचराचर की||
आरती कीजै०||

शरणागत वत्सल व्रतधारी|
भक्त कल्प तरुवर असुरारी||
आरती कीजै०||

नाम लेत जग पावनकारी|
वानर सखा दीन दुख हर की||

आरती कीजै श्री रघुवर जी की|
सत् चित आनन्द शिव सुन्दर की||

श्री रामचन्द्र जी की आरती श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन, हरण भवभय दारुणम्|नव कंज लोचन, कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम्||कन्दर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुन्दरम्|पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुचि नोमि जनक सुतावरम्||भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनम्|रघुनन्द आनन्दकन्द कौशलचन्द दशरथ-नंदनम||सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषणम्|आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम जित खरदूषणम्||इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम्।मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल दल गंजनम्॥मन जाहि राचेऊ मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो|करुणा निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो||एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषीं अली|तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली||

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन, हरण भवभय दारुणम्|नव कंज लोचन, कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम्||कन्दर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुन्दरम्|पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुचि नोमि जनक सुतावरम्||भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनम्|रघुनन्द आनन्दकन्द कौशलचन्द दशरथ-नंदनम||सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषणम्|आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम जित खरदूषणम्||इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम्।मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल दल गंजनम्॥मन जाहि राचेऊ मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो|करुणा निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो||एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषीं अली|तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली||

श्री शिव जी की आरतीॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा|ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा||ॐ जय शिव ओंकारा...एकानन चतुरानन पंचानन राजे|हंसासन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे||ॐ जय शिव ओंकारा......दो भुज चार चतुर्भज दस भुज अति सोहे|तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहे||ॐ जय शिव ओंकारा......अक्षमाला, वनमाला, मुण्डमाला धारी|चंदन मृदमद सोहे, भोले त्रिपुरारी||ॐ जय शिव ओंकारा......श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे|सनकादिक, ब्रह्मादिक, भूतादिक संगे|ॐ जय शिव ओंकारा......कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूल धरता|सुखकर्ता, दुखः हर्ता, जगपालन करता||ॐ जय शिव ओंकारा......ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका|प्रणवाक्षर के मध्ये तीनो ही एका||ॐ जय शिव ओंकारा......त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे|कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे||ॐ जय शिव ओंकारा.....#Vnita ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा|ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा||ॐ जय शिव ओंकारा...

श्री शिव जी की आरती

ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा|
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा||
ॐ जय शिव ओंकारा...

एकानन चतुरानन पंचानन राजे|
हंसासन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे||
ॐ जय शिव ओंकारा......

दो भुज चार चतुर्भज दस भुज अति सोहे|
तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहे||
ॐ जय शिव ओंकारा......

अक्षमाला, वनमाला, मुण्डमाला धारी|
चंदन मृदमद सोहे, भोले त्रिपुरारी||
ॐ जय शिव ओंकारा......

श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे|
सनकादिक, ब्रह्मादिक, भूतादिक संगे|
ॐ जय शिव ओंकारा......

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूल धरता|
सुखकर्ता, दुखः हर्ता, जगपालन करता||
ॐ जय शिव ओंकारा......

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका|
प्रणवाक्षर के मध्ये तीनो ही एका||
ॐ जय शिव ओंकारा......

त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे|
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे||
ॐ जय शिव ओंकारा.....
#Vnita
ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा|
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा||
ॐ जय शिव ओंकारा...

श्री विष्णु जी की आरतीॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे| भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे||ॐ जय जगदीश हरे||जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका|सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका||ॐ जय जगदीश हरे||मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी|तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी||ॐ जय जगदीश हरे||तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी|पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी||ॐ जय जगदीश हरे||तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता|मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता||ॐ जय जगदीश हरे||तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति|किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती||ॐ जय जगदीश हरे||दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे|अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा (मैं) तेरे||ॐ जय जगदीश हरे||विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा|श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा||ॐ जय जगदीश हरे||ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे|भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे||ॐ जय जगदीश हरे||

श्री विष्णु जी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे|
भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे||
ॐ जय जगदीश हरे||

जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका|
सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका||
ॐ जय जगदीश हरे||

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी|
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी||
ॐ जय जगदीश हरे||

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी|
पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी||
ॐ जय जगदीश हरे||

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता|
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता||
ॐ जय जगदीश हरे||

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति|
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती||
ॐ जय जगदीश हरे||

दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे|
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा (मैं) तेरे||
ॐ जय जगदीश हरे||

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा|
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा||
ॐ जय जगदीश हरे||

ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे|
भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे||
ॐ जय जगदीश हरे||

श्री सत्यनारायण जी की आरतीॐ जय लक्ष्मीरमणा, स्वामी जय लक्ष्मीरमणा|सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरणा||टेक||रत्नजटित सिंहासन, अद्भुत छवि राजै|नारद करत निराजन घंटा ध्वनी बाजै||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी....प्रकट भयें कलिकारण, द्विज को दरस दियो|बूढों ब्राह्मण बनके, कंचन महल कियो||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी|च्रंदचूड़ एक राजा, तिनकी बिपति हरी||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दिन्हीं|सो फल भोग्यो प्रभूजी, फेर अस्तुति किन्हीं||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....भाव भक्ति के कारण, छिन-छिन रुप धरयो|श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....ग्वाल बाल संग राजा, वन में भक्ति करी|मनवांचित फल दिन्हों, दीन दयालु हरि||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा|धूप दीप तुलसी से, राजी सत्य देवा||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे|तन-मन-सुख-संपत्ति, मन-वांछित फल पावै||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....By वनिता कासनियां पंजाब चॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी जय लक्ष्मीरमणा|सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरणा||

श्री सत्यनारायण जी की आरती
ॐ जय लक्ष्मीरमणा, स्वामी जय लक्ष्मीरमणा|
सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरणा||टेक||

रत्नजटित सिंहासन, अद्भुत छवि राजै|
नारद करत निराजन घंटा ध्वनी बाजै||
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी....

प्रकट भयें कलिकारण, द्विज को दरस दियो|
बूढों ब्राह्मण बनके, कंचन महल कियो||
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....

दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी|
च्रंदचूड़ एक राजा, तिनकी बिपति हरी||
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....

वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दिन्हीं|
सो फल भोग्यो प्रभूजी, फेर अस्तुति किन्हीं||
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....

भाव भक्ति के कारण, छिन-छिन रुप धरयो|
श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो||
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....

ग्वाल बाल संग राजा, वन में भक्ति करी|
मनवांचित फल दिन्हों, दीन दयालु हरि||
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....

चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा|
धूप दीप तुलसी से, राजी सत्य देवा||
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....

सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे|
तन-मन-सुख-संपत्ति, मन-वांछित फल पावै||
ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....


ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी जय लक्ष्मीरमणा|
सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरणा||

श्री गणेश आरती (मराठी सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाचीनूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाचीसर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राचीकंठी झलके माल मुकताफळांचीजय देव जय देव, जय मंगल मूर्तिदर्शनमात्रे मनकामना पूर्तिजय देव जय देवरत्नखचित फरा तुझ गौरीकुमराचंदनाची उटी कुमकुम केशराहीरे जडित मुकुट शोभतो बरारुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरियाजय देव जय देव, जय मंगल मूर्तिदर्शनमात्रे मनकामना पूर्तिजय देव जय देवलम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदनासरल सोंड वक्रतुंड त्रिनयनादास रामाचा वाट पाहे सदनासंकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदनाजय देव जय देव, जय मंगल मूर्तिदर्शनमात्रे मनकामना पूर्तिजय देव जय देवशेंदुर लाल चढायो अच्छा गजमुख कोदोन्दिल लाल बिराजे सूत गौरिहर कोहाथ लिए गुड लड्डू साई सुरवर कोमहिमा कहे ना जाय लागत हूँ पद कोजय जय जय जय जयजय जय जी गणराज विद्यासुखदाताधन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमताजय देव जय देवअष्ट सिधि दासी संकट को बैरीविघन विनाशन मंगल मूरत अधिकारीकोटि सूरज प्रकाश ऐसे छबी तेरीगंडस्थल मद्मस्तक झूल शशि बहरीजय जय जय जय जयजय जय जी गणराज विद्यासुखदाताधन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमताजय देव जय देवभावभगत से कोई शरणागत आवेसंतति संपत्ति सबही भरपूर पावेऐसे तुम महाराज मोको अति भावेगोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे वनिता कासनियां पंजाब जय जय जी गणराज विद्यासुखदाताधन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमताजय देव जय देव



सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची
नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची
सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची
कंठी झलके माल मुकताफळांची

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनकामना पूर्ति
जय देव जय देव

रत्नखचित फरा तुझ गौरीकुमरा
चंदनाची उटी कुमकुम केशरा
हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा
रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनकामना पूर्ति
जय देव जय देव

लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना
सरल सोंड वक्रतुंड त्रिनयना
दास रामाचा वाट पाहे सदना
संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदना

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनकामना पूर्ति
जय देव जय देव

शेंदुर लाल चढायो अच्छा गजमुख को
दोन्दिल लाल बिराजे सूत गौरिहर को
हाथ लिए गुड लड्डू साई सुरवर को
महिमा कहे ना जाय लागत हूँ पद को

जय जय जय जय जय
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमता
जय देव जय देव

अष्ट सिधि दासी संकट को बैरी
विघन विनाशन मंगल मूरत अधिकारी
कोटि सूरज प्रकाश ऐसे छबी तेरी
गंडस्थल मद्मस्तक झूल शशि बहरी

जय जय जय जय जय
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमता
जय देव जय देव

भावभगत से कोई शरणागत आवे
संतति संपत्ति सबही भरपूर पावे
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे
गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे


जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमता
जय देव जय देव

श्री गणेश आरती (हिन्दी) By वनिता कासनियां पंजाब जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी।माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी॥(माथे पर सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी)पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।(हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा)लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥अँधे को आँख देत कोढ़िन को काया।बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा।माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥(दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी )(कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी॥)जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

श्री गणेश आरती (हिन्दी)

By वनिता कासनियां पंजाब


जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी॥
(माथे पर सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी)

पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
(हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा)
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

अँधे को आँख देत कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥

'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
(दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी )
(कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी॥)

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

आरती कीजै हनुमान लला की|दुष्ट दलन रघुनाथ कला की||टेक||जाके बल से गिरवर काँपे|रोग दोष जाके निकट ना झाँके||अंजनि पुत्र महा बलदाई|संतन के प्रभु सदा सहाई||दे बीरा रघुनाथ पठाये|लंका जारि सिया सुधि लाये||लंका सो कोट समुद्र सी खाई|जात पवनसुत बार न लाई||लंका जारि असुर संहारे|सियाराम जी के काज सँवारे||लक्ष्मण मुर्छित पडे़ सकारे|आनि संजीवन प्राण उबारे||पैठि पाताल तोरि जम कारे|अहिरावन की भुजा उखारे||बायें भुजा असुर दल मारे|दहिने भुजा सब संत जन उबारे||सुर नर मुनि (जन) आरती उतारे|जै जै जै हनुमान उचारे||कचंन थार कपूर लौ छाई|आरती करत अंजना माई||जो हनुमान जी की आरती गावैं|बसि बैकुंठ परम पद पावैं||लंक विध्वंस किये रघुराई|तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई||आरती कीजै हनुमान लला की|दुष्ट दलन रघुनाथ कला की||

आरती कीजै हनुमान लला की| दुष्ट दलन रघुनाथ कला की||टेक|| जाके बल से गिरवर काँपे| रोग दोष जाके निकट ना झाँके|| अंजनि पुत्र महा बलदाई| संतन के ...